3 Poems On Begging in Hindi

3 Poems On Begging in Hindi


आज निकल के घर से बाहर गया,
तो देखा उन दीन-दुखियारो को,
नन्हे हाथो मे खाली कटोरी,
और नयनो से निकलते अश्रु धारो को।

जिन्हे देख हृदय पसीज गया,
मन मेरा बेबस हो गया,
उनके हाथो के सिक्को को सुन,
आज मैं तो संगीत भूल गया।

जिन्हे देख सहसा मैं ठहरा,
मानो कुछ देर अमीर मैं बन गया,
उन्हे देकर चंद सिक्के मैं,
उनकी दुआओ से गरीब मैं बन गया।

3 Poems On Begging in Hindi

एक सिक्के की आस में, कब से भटक रहा है वो,
सिग्नल की बत्ती लाल देख, गाडियों पे है झपट रहा वो,
मांग रहा हर एक से सिक्का, लगाये हुए वो आस.. 
कुछ उससे नज़रे चुरा रहे, कुछ अपनी मजबूरी जता रहे, 
आसानी से मिलता कहाँ सिक्का, जिसकी उसे तलाश.. 
यह एहसास उसे भी है, फिर भी कर रहा प्रयास.. 
जा रहा हर एक के पास, अपनी मज़बूरी लिए हुए, 
पसीज जा रहा जिनका सीना, वो दे देते उसे सिक्का अपना, 
कुछ बेगैरत ऐसे भी है, जो बेचारे को डांट लगाते, 
चोर-चकार की संज्ञा देकर, दूर से ही उसे भागते. 
उस बदनसीब की नसीब कहाँ की कोई उसको प्यार दे, 
उसको तो इतना भी न पता, मातृ छाया होता है क्या?? 
माँ और माँ की प्यार का तरसा, तरस रहा है सिक्को को, 
सिक्को से ही उसे रोटी है मिलनी, 
और सिक्को से प्यार.. उसकी ये दुर्दशा देख, 
उठते कई सवाल| उसकी बेवसी क्या है ऐसी? 
जो फैला रहा वो हाथ| होने थे जिस हाथ किताबें, 
क्यूं उनको सिक्को की डरकर? बच्चे ही भविष्य हमारा, 
हम सब ये जानते है, फिर भविष्य का वर्तमान ऐसा, 
क्यूं इसे ऐसे स्वीकारते है? ये कैसी है समस्या, 
जिसे हम, सुलझा नहीं पाए??

3 Poems On Begging in Hindi

कुछ टुकड़ों का शिकारी हूँ, मैं एक भूखा भिखारी हूँ
पाँव में बड़े - बड़े छाले हैं, फटा झोला कंधे पे डाले है
किस्मत का हारा जुआरी हूँ, मैं एक भूखा भिखारी हूँ
बदन में धूल को संभाले हूँ, बालों में मधुमक्खियों को पाले हूँ
हर चौखट का पुजारी हूँ, मैं एक भूखा भिखारी हूँ
एक सूखा हुआ फूल हूँ, जूते के तले की धूल हूँ
उम्मीद को पेट में संवारे हूँ, मैं एक भूखा भिखारी हूँ
कोई सपना नहीं पाला है, सिर्फ कटोरे को संभाला है
सारे मुल्क का आभारी हूँ, मैं एक भूखा भिखारी हूँ...।।

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